Monday, September 16, 2013

आलिंगन

तोरी छवि मन में बसाके
सुमिरन करत रहत दिन रैन
नींद भी भई अब तो मोरी बैरी
बिरह में तेरे  न मिलता चैन

घुमत रहत बावरी सी सारी डगरिया
जग लगे मोहे पी की नगरिया
नाचत मन मोरा प्रेम की घुँघर बांधे
छलकी जाये मोरी जल की गगरिया

तोरे चरण बने भाग्य की रेखा
नियति का सुन्दर ये प्रबंध है
अनुरागी इस मन में अब तो
कस्तूरी सी प्रेम सुगन्ध है

मन करत प्रतिपल तोरा ही दर्शन
तुम्ही यथार्थ तुम्ही मोरे स्वप्न
तोड़ के जग के सारे बंधन
पूर्ण करो अपना मधुर आलिंगन





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