तोरी छवि मन में बसाके
सुमिरन करत रहत दिन रैन
नींद भी भई अब तो मोरी बैरी
बिरह में तेरे न मिलता चैन
घुमत रहत बावरी सी सारी डगरिया
जग लगे मोहे पी की नगरिया
नाचत मन मोरा प्रेम की घुँघर बांधे
छलकी जाये मोरी जल की गगरिया
तोरे चरण बने भाग्य की रेखा
नियति का सुन्दर ये प्रबंध है
अनुरागी इस मन में अब तो
कस्तूरी सी प्रेम सुगन्ध है
तोड़ के जग के सारे बंधन
पूर्ण करो अपना मधुर आलिंगन
सुमिरन करत रहत दिन रैन
नींद भी भई अब तो मोरी बैरी
बिरह में तेरे न मिलता चैन
घुमत रहत बावरी सी सारी डगरिया
जग लगे मोहे पी की नगरिया
नाचत मन मोरा प्रेम की घुँघर बांधे
छलकी जाये मोरी जल की गगरिया
तोरे चरण बने भाग्य की रेखा
नियति का सुन्दर ये प्रबंध है
अनुरागी इस मन में अब तो
कस्तूरी सी प्रेम सुगन्ध है
मन करत प्रतिपल तोरा ही दर्शन
तुम्ही यथार्थ तुम्ही मोरे स्वप्नतोड़ के जग के सारे बंधन
पूर्ण करो अपना मधुर आलिंगन
